एक मस्जिद न गिरी मुल्क का अभिमान गिरा/
साज़िशें ख़ुश हुयीं कि किस तरह ईमान गिरा/
आज भी पाक ज़मीं रोती है तन्हा तन्हा/
नामे भगवन पे यहाँ किस तरह इंसान गिरा/
सदियों बरसों के भरोसे का गला काट दिया/
दिल के रिश्तों से बनाया हुआ अरमान गिरा/
नाम पे मेरे सियासत ने ज़माना लूटा/
किस क़दर आदमी साँसे लिए बेजान गिरा/
रो के कहते हैं श्री राम अयोध्या कि क़सम/
मेरी नज़रो में मुहब्बत का यूँ बलिदान गिरा/
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