Wednesday, December 11, 2013

राम आये नगर में तो हलचल दिखी

राम आये नगर में तो हलचल दिखी/ जिस शकल को पढ़ा उसपे ख़ुशियाँ लिखी/ जैसे लगता था आबो हवा है बिकी/ जिससे भगवान कि साँसे ख़ुद है रुकी/ शोर नारों से बचकर वो चलते रहे/ हर घड़ी कुछ सवालों को बुनते रहे/
क्या हुआ है मेरे घर में मजमा है क्यूँ/ नज़रें जैसे पड़ी भीड़ पर उनकी ज्यूँ/ देखा कुछ नौजवानों का शोरो फ़ुग़ाँ/ थोड़ा आगे बढ़े जल रही थी दुकाँ/ मुफ़लिसों और बेचारों के जलते मकाँ/ उनकी प्यारी अयोध्या में हर सू धुआँ/
तेज़ क़दमों से जब वो महल को चले/ रास्ते में लगे जैसे वहशत पले/ हर सिमत में वहाँ पे थे मजमें लगे/ उनके अपने महल में थे झंडे सजे/ सबकी शक्लों पे ख़ुशियों कि वहशत रजे/ जैसे हर एक डगर पर थे बाजे बजे/
सोचकर जैसे क़दमों से आगे बढ़े/ कुछ अवाज़ें थी कानों में कैसे लड़े/ फिर दुबारा महल कि थे सीधी चढ़े/ जिससे मजमें कि शक्लों को फिर से पढ़ें/ दूर नज़रों ने देखा कहीं पर धुआँ/ जल्दी जल्दी क़दम से वो पहुंचे वहाँ/
एक मजमा था उनकी सदा दे रहा/ और कहता गिरा दो ये ढाँचा यहाँ/ नामे बाबर मिटा दो सदा के लिए/ कह दो तैय्यार हैं वो सज़ा के लिए/ माँ के माथे का कालिख गिराएंगे हम/ राम के नाम को फिर सजायेंगे हम/
नामे भगवन का डंका बजायेंगे हम/ ए अयोध्या तेरे गीत गायेंगे हम/ इतना कहके वो मस्जिद गिराने लगे/ उनके क़ायद भी जल्दी से आने लगे/ नाम भगवन के सब गीत गाने लगे/ उसकी मिट्टी तिलक से सजाने लगे/
ज़ोर से शोर उट्ठा फ़लक गिर गया/ शर्म से सारे इन्सां का झुक सिर गया/ राम कहते रहे किसने क्या कर दिया/ मेरी आँखों को आंसू से क्यूँ भर दिया/ कौन है ये वहाँ पर जो सब कर रहे/ जिससे हर सिम्त इन्सां फ़क़त डर रहे/
पाक मेरी ज़मीं पर लहू बह गया/ क्यूँ सियासत में इन्सां ज़हर सह गया/ सदियों पहले ज़माने से मैं कह गया/ देखना था जो कलयुग में ये रह गया/ देखते देखते सारी धरती जली/ और सियासत कि गोदी में साज़िश पली/
मुल्क जलता रहा लोग बढ़ते रहे/ सीढ़ियां सब सियासत कि चढ़ते रहे/ ख़ौफ़ सारी नज़र में वो गढ़ते रहे/ सारे इंसान आपस में लड़ते रहे/ सदियों सदियों का रिश्ता कहाँ खो गया/ बोले लक्ष्मण से भाई ये क्या हो गया/
कौन रंजिश दिलों में यहाँ बो गया/ सारे दिल से मुहब्बत को ख़ुद धो गया/ पलमें ख़ुशियों का अम्बर कहाँ सो गया/ कुछ न बोले लबों से था दिल रो गया/ कौन थे मुझसे ही साज़िशें कर गए/ मेरी अपनी अयोध्या में लड़ मर गए/

Tuesday, December 10, 2013

श्री राम का ग़म और अयोध्या


एक मस्जिद न गिरी मुल्क का अभिमान गिरा/
साज़िशें ख़ुश हुयीं कि किस तरह ईमान गिरा/

आज भी पाक ज़मीं रोती है तन्हा तन्हा/
नामे भगवन पे यहाँ किस तरह इंसान गिरा/

सदियों बरसों के भरोसे का गला काट दिया/
दिल के रिश्तों से बनाया हुआ अरमान गिरा/

नाम पे मेरे सियासत ने ज़माना लूटा/
किस क़दर आदमी साँसे लिए बेजान गिरा/

रो के कहते हैं श्री राम अयोध्या कि क़सम/
मेरी नज़रो में मुहब्बत का यूँ बलिदान गिरा/

Salman Rizvi